Saturday, May 16, 2020

बादलों के प्रदेश शिलांग में...यात्रा संस्मरण

बादलों के प्रदेश शिलांग में ..........( 2012 की यात्रा संस्मरण )


मेघालय यानी बादलों का घर, जी हाँ, इसबार हमने निश्चय किया था कि इस 'समर वेकेशन' पर बच्चों को बादलों के प्रदेश मेघालय घुमाने ले चलेंगे l मेघालय उत्तर-पूर्व भारत का एक ऐसा राज्य हैं जो स्त्री प्रधान हैं l इस राज्य को खासी हिल्स के नाम से भी जाना जाता हैं l बचपन में सुना था कुछ लोग शिलांग को मिनी लंडन भी कहते हैं l क्रिश्चियनटी का प्रभाव यहाँ ज्यादा देखने को मिलता हैं l यहाँ खासी जनजाति के लोग रहते हैं l साथ ही यहाँ हिंदुस्तान के कोने-कोने से लोग आकर बसे हुए हैं l कोई नौकरी के सिलसिले में तो कोई व्यवसाय करते हैं l
13जून '2012 की सुबह हमने शिलांग के लिए प्रस्थान किया l तेजपुर से शिलांग की दुरी लगभग 250 कि.मी. हैं जबकि गुवाहाटी से लगभग 100 कि.मी. हैं l हमारी गाडी दोनों तरफ के पहाड़ी जंगलों को चीरते हुए आगे बढने लगी l उत्तर-पूर्व भारत की खासियत ही यह हैं कि यहाँ हर मौसम में चारों ओर हरियाली देखने को मिलती हैं l हालांकि यहाँ भी जंगलों की अवैध कटाई को हम नकार नहीं सकते l फिर भी यहाँ की मनोरम प्राकृतिक छटाएं हमें आकार्षित किये वगैर नहीं रहती l कल-कल करती पहाड़ी झरने, बादलों से गुजरते मनोरम दृश्य ,पर्यटकों को आकर्षित किये बिना नहीं रहता l आपको रास्ते भर गाँव से आई पहाड़ी महिलाओं को चाय स्टाल में चाय , सिजिनेबल फल (अनानस ,प्लम ,संतरा आदि ,) सब्जियां (आर्गेनिक) तथा सुपारी पान बेचती नजर आएगी l हमारी गाडी "बड़ा पानी " डेम से गुजरती हुई शिलांग की और आगे बड़ने लगी l ज्यो-ज्यो गाडी ऊपर चढ़ने लगी त्यों-त्यों गर्मी का आभास कम होने लगा l क्योंकि मेघालय एक पहाड़ी प्रदेश हैं l शिलांग जैसे हिल स्टेशन पर आकर वैसे भी मन प्रफुल्लित हो जाता हैं l बच्चे तो सिक्किम की याद करने लगे ,पिछले साल वहाँ का सैर किया था हमने l दोनों ही पहाड़ी क्षेत्र हैं l मगर दोनों प्रदेशो में बहुत फर्क हैं l करीब साढ़े तीन बजे हम शिलांग के सैनिक आरामगाह में पहुँच गए जहाँ पतिदेव ने पहले से ही कमरा बुक करा रखा था l
बादलो का प्रदेश -मेघालय , जिसकी राजधानी हैं शिलांग जो पूर्वी खासी हिल्स का एक जिला हैं l कहा जाता हैं कि शिलांग का नाम एक शक्तिशाली देवता से ली गई हैं l यह समुद्र ताल से 1491 की उंचाई में स्थित हैं l इस खुबसूरत हिल स्टेशन में पहुँचने के लिए गुवाहाटी से बसे और किराए की गाडिया चलती हैं l इस जिले में घुमने के लिए कई मनोरम जगहे हैं l
शिलांग पहुंचकर हम जल्दी से फ्रेश होकर वार्ड लेक के लिए निकल पड़े l "वार्ड लेक " शहर के बीचो-बीच स्थित 'सर विलियम वार्ड' नामक व्यक्ति के नाम से निर्मित झील हैं l वार्ड लेक छोटा मगर साफ सुथडा है l यहाँ नौका विहार की व्यवस्थाये भी हैं l लेक के ऊपर एक छोटी सा पुल हैं जिसके नीचे हँस के झुण्ड का तैरना और सैकड़ो मछलियो का झुण्ड देखते ही बनता है l जैसे स्वर्ण मंदिर के तालाब में मछलियो का झुण्ड दिखता है l पर्यटक उन मछलियों को मुरी (चावल से बनता हैं ) जब बिखेर देता हैं तो मछलिया उसे चुगने टूट पड़ते हैं l यह देख बच्चे तो बहुत खुश हो गए l मेरी बगल से गुजरती एक खासी महिला से जब मैंने कहा - आपके साथ एक तस्वीर खीचना चाहती हूँ तो वह सहर्ष तैयार होकर मेरे सामने खड़ी हो गई l पच्चीस साल बाद मैं शिलांग आई थी l वार्ड लेक में कुछ समय बिताने के बाद हम यहाँ के सबसे बड़ा चर्च कैथेड्रल कैथोलिक चर्च देखने निकल पड़े l शिलांग के अन्दर सफ़र करना हो तो इस बात का ध्यान रखना आवश्यक हैं की यह रूट वन वे हैं या नहीं l क्योंकि अगर एकबार वन वे में घुस गए तो फिर लौट कर आने में काफी घूमना पड़ता हैं l खैर हम आखिर शहर के दिल में बसी कैथेड्रल चर्च में पहुँच ही गए l उसवक्त चर्च के अन्दर प्रार्थना चल रही थी l हम भी चुपचाप बैठकर थोड़ी देर प्रार्थना करने लगे तथा कुछ देर बाद लौट आये l मुझे गोवा के चर्चों की याद हो आई l जब नव लेखक शिविर में भाग लेने हेतु पहुंची थी l इस चर्च की खूबसूरती देखते ही बनती हैं l
शाम ढल चुकी थी l हम वापस सैनिक आरामगाह लौट आये ,जहाँ मेरी साहित्यिक मित्र मंजू लामा अपने पतिदेव के साथ हमारा इन्तजार कर रही थी l मंजू लामा नेपाली और हिंदी दोनों भाषाओ में कलम चलाती हैं l उनसे मिलकर ख़ुशी हुई l कुछ देर के वार्तालाप पश्चात वे चली गई l दिन भर के थकान से निजाद पाने के लिए हम भी रात्री भोजन पश्चात सोने चले गए क्योंकि सुबह जल्दी जो उठाना था l
शिलांग आये और चेरापूंजी न जाए तो यह यात्रा अधूरी कहलाएगी l अत : दूसरी सुबह यानी  14.06.2012 की सुबह 7.30  बजे हम विश्व के सबसे ज्यादा वारिश होने वाली जगह चेरापूंजी के लिए हम रवाना हुए l चेरापूंजी पहुँचने से पहले रास्ते में ही कई दर्शनीय स्थल हैं , हम उसे देखते हुए आगे बढ़ने लगे l शहर से 10 की.मी. की दूरी पर 1965 मीटर ऊंचाई पर शिलांग पिक स्थित हैं l यह स्थान पिकनिक स्पोट के लिए भी मशहूर हैं l यहाँ की उंचाई से शिलांग का नजारा देखकर पर्यटक आनंदित हो उठते हैं l क्यों न हो व्यस्त जिंदगी से कुछ पल प्रकृति के साथ बीता पाने की ख़ुशी किसे नहीं होगी l हम कुछ देर उन नजारों को निहारते रहे जो हमारे मन को ही नहीं आँखों को भी सुकून पहुंचा रही थी l
हमारा अगला पड़ाव एलिफेंटा फाल था जो शहर से 12 की.मी. की दूरी पर था l कहा जाता हैं कि एलिफेंटा फॉल की आकर हाथी के मस्तक जैसा दिखाई देता था , मगर कहा जाता हैं एक बार भूकंप के जोर झटके के कारण अपना आकार खो दिया ,परन्तु फिर भी खुबसूरत नज़ारे आज भी पर्यटकों को आकर्षित किये बिना नहीं रहता l चट्टानों से गिरती सफ़ेद झरने जो कल-कल शब्दों के साथ शांत वातावरण में सुकून देता हैं l एलीफेंटा फॉल में खरीदारी भी कर सकते हैं , ट्रेडीशनल ड्रेस पहन कर फोटो खिंचवाने की व्यवस्था भी हैं l इसके अलावा कैप्टेन विलियाम् संगमा राजा संग्रहालय, स्वदेशी संस्कृती के लिए ड़ोंन बोस्को सेंटर ,गोल्फ कोर्स आदि जगहों को देख सकते हैं l हाँ यदि आप पेड़-पौधो को पसंद हैं तो लेडी हैदरी पार्क जाना न भूले ,यहाँ की खूबसूरत फूलो और पौधे आपको आकर्षित किये बिना नहीं रहती l वैसे फूलों को देखने के लिए उपयुक्त समय हैं अप्रैल और अक्टूबर l
हमारी गाडी अब चेरापूंजी की तरफ भाग रही थी l मनोरम पहाड़ी छटा देखते ही बन रहा था l पर्यटकों की आवा-जाहि लगी हुई थी l सच कहा जाए तो सही मायनों में चेरापूंजी बादलो का प्रदेश हैं l हमारी गाडी बादलों को चीरती हुई आगे बढ़ रही थी l घाटी में कुछ जगह धुंध से भरा था तो कुछ जगह जुरासिक फिल्म की याद दिलाती
घने जंगलों से घिरी हरा-भरा दृश्य आँखों को सुकून पहुंचा रही थी l हम रुक-रुक कर दृश्यों का आनंद लेते हुए अपने कैमरों में सुखद क्षणों को कैद करते हुए आगे बढ़ते गए l चेरापूंजी 4,500 फिट की ऊंचाई पर स्थित हैं l चेरापूंजी को विश्व में सबसे ज्यादा वारिश रिकार्ड के लिए जाना जाता हैं l चेरापूंजी की वार्षिक औसत वर्षा 10,871 मिली मीटर हैं l यहाँ मई से सितम्बर तक भारी वर्षा रहती हैं l तत्पशात अक्टूबर से वहाँ का मौसम अच्छा हो जाता हैं l उसवक्त पर्यटक वहां पहुंचकर प्रकृति का आनंद उठा सकते हैं l वाकयी प्रकृति की खूबसूरती वही पहुँचकर कर सकते हैं l हम ज्यो-ज्यों चेरापूंजी पहुँचने लगे त्यों-त्यों तेज वारिश होने लगी l फलस्वरूप हम घाटी के कुछ खुबसूरत दृश्यों का अवलोकन नहीं कर पाए l बारिश की वजह से मवस्मई गुफा तक पहुंचकर भी हम गुफा के अन्दर नहीं जा पाए क्योंकि गुफा के अन्दर पानी भरा था l खैर हम फिर भी बहुत खुश थे इन वादियों में शांति से कुछ पल बिता पाने के लिए l इसतरह शिलांग ट्रिप की खुबसूरत यादो को दिल में संजोये हम चेरापूंजी से सीधे तेजपुर के लिए रवाना हो गए l

रीता सिंह 'सर्जना'
तेजपुर,असम

Monday, September 23, 2019

स्पेस (लघुकथा)

स्पेस  (लघुकथा)

"रजनी भाभी तुम्हारी तो बहुत ठाठ है , जब से बहु आई है,तुम्हारी तो किस्मत ही खुल गई है।" नीरा घर के अंदर घुसते  ही बोली।उसकी बात सुनकर वह केवल मुस्कुराई । नीरा उसकी पड़ोसन है, अक्सर किसी न किसी बहाने आती रहती है ,किसी की अच्छाइयां उससे देखी नहीं जाती, इसलिये ज्यादातर परेशान रहती है।उसे मुस्कुराता देख वह  फिर बोली।

 "कैसे निभाती हो तुम अपनी बहु से जो तुम्हें सर आंखों में रखती है। मैं तो अपनी बहु से एक सेकैंड भी निभा नहीं पाती, सारादिन मुफ्त की रोटी तोड़ती रहती है। मालूम ,इसलिये तो मैं  एक सेकैंड खाली रहने नहीं देती हूँ । जितना छूट दोगी उतना  ये सर में आकर बैठेगी, मेरी मानों बहु को ज्यादा ढिल  देना नहीं चाहिये ।" उसकी बाते सुनकर रजनी को उसकी मानसिकता पर तरस आई।कुछ देर चुप रहने के बाद वह बोली-

"देखों नीरा हमारी बहु स्नेहा न केवल पढ़ी-लिखी  है बल्की संस्कारी भी  है । शैवाल ने जब स्नेहा को पसंद किया तो  मैंने सोच लिया था कि उसके साथ स्पेस रखुंगी जो आमतौर पर नये घर में आकर अनकम्फर्ट महसूस होने लगते हैं। मैंने पहले दिन ही बहु को कह दिया, तुम मेरी बहु नहीं बेटी बनकर रहोगी। उसने भी अपना धर्म निभाते हुए घर और ऑफिस  दोनों में तालमेल रखा। और मैंने थोड़ा सा स्पेस देकर सास बहु की रिश्ते को कोमल बनाया ।
ऑफिस जाने से पहले वह सबकुछ करके जाती है और जब वह  घर लौटती है तो  मैं सास बनकर यह एस्पेक्ट नहीं करती कि बहु आकर हमें चाय बनाके पिलाये।  वह चाहती है यह सब करे मगर मैं करने नहीं देती बल्की उसके लिये चाय नाश्ता तैयार करके देती हूँ , इसमें बुरा मानने वाली क्या बात है? बेटी जब थक कर आती है तो हम उसकी परेशानी समझ कर सबकुछ कर देते है तो बहु को क्यों नहीं ?नीरा आखिर वह भी तो किसी की बेटी है जो सबको छोड़कर हमारे घर आई है । नये घर को अपनाने में समय लगता ही है ।आखिर हमें भी तो उसे एक कम्फोर्ट जॉन देना चाहिये। बस मैं यही करती हूँ।"

पता नहीं  नीरा को रजनी की बाते कितनी पल्ले  पड़ी  , कुछ देर बाद वह  चुपचाप वहां से चली गई।

ऋता सिंह सर्जना
तेजपुर असम

अलविदा (कहानी)

अलविदा (कहानी)

विश्वास नहीं होता, आश्रम की वह अधेड़ स्त्री जिसकी आँखों में चश्मा चढ़ा हुआ था ,बाल कुछ-कुछ जगहों पर सफेदी ने जकड़ राखी थी वह और कोई नहीं सरला ही थी l
मुद्दत बाद मेरी सरला से मुलाक़ात हुई थी l वह दिन भी क्या था जब दोनों एक दुसरे को देखे बिना एक पल भी नहीं रह सकती थी l मगर आज, एक अरसा हो गया हमदोनो को जुदा हुए l
काफी अरसे बाद आज आश्रम के दौरे पर जब मेरी नजर उस अधेड़ स्त्री पर पड़ी तो मैं नजरे न हटा न सकी l मेरे मष्तिष्क जोर दे रहा था, शायद याद कर रहा था कि इस महिला को मैंने कही देखा है l मुझे याद आने लगा l और मैंने उसे पुकार ही लिया l
"सरला"
वह स्त्री ठिठकी l
'सरला मैं नीलू हूँ तुम्हारी सहपाठी l '
उस महिला ने मुझे घुर कर देखा, न कुछ बोली , न मुस्कुराई बस आगे बढ़ गयी l
सरला इतना कठोर मत बनो, तुम भूल गयी अपनी सहेली को , अपनी नीलू को l मैंने तुम्हे कहाँ-कहाँ नहीं ढूढा l तुम्हारा अचानक लापता हो जाना ओह : कितना असहनीय था l
महिला पुन: ठिठकी और धीरे से कहा - "मैं सरला नहीं हूँ l " और आगे बढ़ गई l मैं निराश मन से लौट तो आई मगर उस महिला को भूल न पायी l अतीत के पन्ने मेरी आँखों के सामने एक-एक कर खुलने लगी l स्कूल से कॉलेज ,तक मैंने और सरला ने एक साथ सफ़र तय किया था l वह संभ्रांत घराने की एकलौती बेटी थी और मैं एक साधारण परिवार से सम्बंधित थी l फिर भी दोनों में दोस्ती बहुत मजबूत थी l दोनों एक ही होस्टल में रहा करती थी l कभी-कभी मैं उदास हो जाती उस वक्त जब फ़ीस भुगतान के लिए घर से मनीआर्डर नहीं आ पहुँचता l वह सरला ही तो थी मुझे ढाढस बंधाती और कहती -"मैं किस काम के लिए हूँ l तुम्हारी फ़ीस भर दी गई हैं l "
"सच!!!!!!!!!!"
"हाँ भई हाँ l "
मेरी आँखे छलछला उठती l
यह देख सरला कहती - "यह क्या नीलू तुम रो रही हो ?"
"तुम्हारा प्यार पाकर मैं गदगद हो गई हूँ सरू l नजाने कौन सा जन्म का रिश्ता हैं तुम्हारा और मेरा l " मैं भावुक हो उठती थी l
"अच्छा यह रोना-धोना बंध करो l देखो तुम्हे मजिस्ट्रेट जरुर बनना हैं l मेरा तो क्या हैं एम् .ए करुँगी फिर किसी अच्छे लड़के से शादी करके घर बसाउंगी l मगर तुम्हे मजिस्ट्रेट बनना ही होगा l वह जानती थी मैं बचपन से ही मजिस्ट्रेट बन्ने का सपना देखा करती थी l बाबूजी भी चाहते थे कि मैं कुछ ऐसा काम करू जिससे उनका सीना गर्व से तन जाए l मगर सपना देखना और हकीकत दो अलग -अलग चीज हैं l मुझे मेरे मंजिल पर पौंचाने की वादा करने वाली मेरी प्रिय सहेली सरला एकदिन अचानक मुझे छोड़ कही चली गई l सिरहाने पर एक ख़त छोड़
गई थी l मैं झट से उठी और पत्र पढ़ने लगी l
प्रिय नीलू ,
न चाहते हुए भी मैं आज तुम्हे छोड़कर बहुत दूर जा रही हूँ l जीवन में मिली कठोर आघात मैं सहन नहीं कर पा रही हूँ नीलू, जीवन में सबकुछ होते हुए भी मैं बिलकुल कंगाल हो गई हूँ l मेरी एक भूल के कारण मैं किसी को मुंह दिखाने की काबिल न रही l उस कमीना रमेश के झूठे प्रेमजाल में फंसकर आज मैं कही की न रही l नीलू मैं जा रही हूँ मगर तुम्हे अपनी मंजिल अवश्य ही पहुँचाना हैं l अपने नाम के बैंक में जमा रूपये सब तुम्हारे नाम ऑथोरिटी देकर जा रही हूँ l जिससे तुम अपनी पढ़ाई पूरी करोगी l
तुम्हारी
अपनी सरला
एक सांस में पत्र समाप्त किया मैंने l फिर तुरंत उठकर सरला के घर पर टेलीफोन डायल किया मैंने l काफी समय बाद एक महिला की आवाज आई l
"हेल्लो ! मिसेस वर्मा हियर l
"हेल्लो आंटी ! मैं नीलू बोल रही हूँ होस्टल से l "
"नीलू ! तुम इतनी घबराई हुई क्यों हो ?सब तो ठीक हैं न ?"
"आंटी ...........सरला घर तो नहीं आई हैं?"
"नहीं तो ! क्या बात हैं ?"
"आंटी ................सरला बिन बताये नजाने कहाँ चली गयी हैं l कल रात वह कब उठकर चली गयी पता नहीं चला l
होस्टल में हलचल मच गयी l सरला गई कहाँ ? टी.वी ./रेडिओ /अखबार सब जगह लौट आने का इस्तहार दिया गया l हर कोशिश नाकामयाब रही l धीरे-धीरे वाट करवट बदलने लगा l परीक्षा सामने थी l मैं पढ़ाई में जुट गई l क्योंकि मेरा अब लक्ष्य एक ही था की जैसे हो मुझे कम्पीटीशन में सफल होना ही है l कम्पटीशन में मैं अव्वल नंबर से पास हुई l और आज मैं एक मजिस्ट्रेट हूँ l
"मेमसाहब साहब टूर से आ गयें हैं l "
"कहाँ है साहब?"
"लाइब्रेरी में l "
"अच्छा तुम चाय बनाओं l " कहती हुई मैं लाइब्रेरी की ओर मुखातिब हुई l जब भी मैं दौरे पर जाती हूँ l
सिद्धांत लाइब्रेरी में घुस जाता है l लाइब्रेरी में मैंने जैसे ही कदम रखा सिद्धांत बोल उठा l
"दौरा कैसा रहा ?"
"ठीक ही था l मगर सिद्धांत, मैं वहां से लौटकर एक सवाल से उभर नहीं पायी हूँ l सिद्धांत मुझे प्रश्न सूचक नजरों से देखने लगा l चाय तैयार थी हम बैठक खाने मे आ गये l
" कौन सा सवाल नीलू ?" चाय की चुश्की लेता हुआ सिद्धांत ने पूछा l
" आज आश्रम में मैंने एक ऐसी महिला को देखा जिसकी शक्ल सरला से हुबहु मिलती है l
" तो इसमें परेशान होने की क्या बात है l इंसान की शक्ल में थोड़ी मेल तो रहता है l "
"मगर वह सरला ही थी l मैंने उसे पुकारा था l वह रुकी थी मगर मै सरला नहीं हूँ कहती हुई आगे बड़ गयी l "
सिद्धांत कुछ पल सोच में डूब गया l बोला - अगर वह सरला थी तो तुमसे क्यों बात नहीं की ? क्या कोई मजबुरी होगी ?
क्या मजबुरी हो सकती है मै मन ही मन सोचने लगी l मै उस महिला से एकबार फिर मिलूंगी मैंने मन ही मन ठान लिया और सिद्धांत से बोल उठी - सिद्धांत कल मेरे साथ आश्रम चलोगे ?
" ठीक है l " सिद्धांत ने मेरे परेशानी को को भांपकर कहा l
सुबह तक की प्रतीक्षा मुझे बहुत कठिन लगने लगा और आखिर प्रतीक्षा की घड़ी भी समाप्त हो गई l मै और सिद्धांत आश्रम के लिए रवाना हो गए l आश्रम के बाहर भीड़ जमा थी l मेरा दिल धक्क से रह गया l हम आश्रम के समीप पहुँच गए l जमीन पर किसी की लाश पड़ी थी l मुझे देख आश्रम का संचालक हाथ जोड़ते हुए सामने आया l
"क्या बात हैं मिस्टर सान्याल ? यह किसकी लाश हैं ? यह कैसे हुआ?"
"नींद की गोली खाने से हुई हैं मैडम l बेचारी कल ही तो यहाँ आई थी l "
"कल ! कहाँ से ?"
"पता नहीं l "
मैं करीब पहुँच चुकी थी l जैसे ही मैं उस लाश के समीप पहुंची तो सन्न रह गई l वह कल की अधेड़ महिला थी l मैं चीख उठी "सरला"!!!!!!!!!!
सिद्धांत मुझे सहारे दिए हुए था l लाश ले जा चूका था l मगर मेरी आँखों से अश्रुधारा अभी भी बह रही थी l मिस्टर सान्याल के थमाए एक छोटी सी नोट अब भी मेरे हाथो में कैद था l मैं वह नोट पढ़ने लगी -
नीलू ,
"तुम्हारी सफलता पर मुझे नाज हैं l तुम अपनी लक्ष्य पर खरी उतरी हो यह जानकार मैं बेहद खुश हूँ l मगर मैं दिन-ब-दिन गन्दगी के दलदल में ऐसे फसती चली गयी की जहाँ से उभारना आमुम्किन हैं l इसलिए मैं आज हमेशा के लिए इस दुनिया से जा रही हूँ l बस एक गुजारिश हैं तुमसे , 'आश्रय' अनाथ आश्रम में मेरी बेटी रानी रहती हैं जिसे मैं कभी भी माँ का प्यार दे न सकी l हो सके तो उसे गोद ले लेना नीलू l
अलविदा सखी अलविदा
सरला
सरला ये तुमने क्या किया, अपनी सहेली को इस काबिल बनाकर खुद हमेशा के लिए इस दुनिया से चली गई l मेरा अंतर्मन करह उठा l काश एक बार तुमने मुझे खुलकल रमेश के बारे में बताई होती !
मुझे अब भी सिद्धांत सहारा दिए हुए था l और मैं उसी प्रकार रो रही थी l सिद्धांत ने धीरे से मेरे सर पर हाथ फेरा और कहा -
"नीलू आओ चले 'आश्रय 'l " सिद्धांत ने भी वह नोट पढ़ ली थी l
हमदोनो ने रानी को गोद ले लिया हैं l रानी भी हम से घुल-मिल गयी हैं l जैसे लगता हैं रानी के रूप में सरला एकबार फिर पुनर्जीवित होकर मेरे पास आ गयी हो l
रीता सिंह सर्जना

Saturday, August 11, 2018

माहिया

      माहिया

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माहिया
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माहिया



मेरे भी हिस्से की
खुशी मिले तुम्हे
सदा मैंने दुआ की
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कीमत लेकिन तुमने
प्यार का न समझा
किया था कभी हमने
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निहाल होते थे तुम
गजब था वह समय
अब यादों मे बस हम

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हमने चाहा तो था
सदा प्यार करे
अहम आड़े खड़ा था
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रीता सिंह  'सर्जना'
तेज़पुर,असम,(भारत )

Monday, March 6, 2017

बॉस इज ऑलवेज राईट (लघुकथा)


स इज ऑलवेज राईट (लघुकथा)



   सभी कर्मचारियों को फ़ौरन बॉस के चेंबर में इमरजेंसी मीटिंग के लिए बुलाया गया l एक ने कहा आज बॉस का माथा बहुत गरम हैं l तभी मिसेस सान्याल बोली - "हाँ मुझे डांटने के लिए बुलाया होगा l " कुछ देर पहले मिसेस सान्याल और मिसेस बरुआ को बॉस ने बुलाकर खूब डाटा था ,यह कहते हुए कि दोनों ने टाइम से काम पूरा करके नहीं दिया l बॉस का सीधा-सीधा मतलब था कि वे कामचोर हैं ,अपनी ड्यूटी इमानदारी से नहीं करती l बॉस बहुत आग बबूला हो गए थे l डाटकर जी नहीं भरा तो पुरे कर्मचारियों को मीटिंग के लिए बुला लिया l मीटिंग क्या था बस भड़ास निकालना था l बॉस गुस्से में बोलते गए ......चार घंटो में मिसेस सान्याल आप काम पूरा नहीं कर सकी जबकि मैंने इमेडीइटली पुट अप करने को कहा था ,मिसेस सान्याल बोली सर मुझे मिसेस बरुआ ने लेटर ही नहीं दिया तो मैं क्या करती ? अब बॉस मिसेस बरुआ की और मुखातिब होकर कहने लगे - " सो मिसेस बरुआ , मुझे आप से यह कतई उम्मीद नहीं थी l एक छोटा सा काम भी आप से नहीं होता , सरकार हमें काम के लिए पैसे देते हैं , यदि हम काम ही नहीं करेंगे तो यह सरासर धोखा करना हुआ ! हमें तो फिल्ड में भी देखना पड़ता हैं और आपलोगों से आराम का काम भी नहीं होता ? मुझे बहुत बुरा लगा , इसका मतलब आपलोग अपनी जिम्मेदारी अच्छे से नहीं करते हैं l बॉस बोलते ही चले गये थे l उन्होंने यह भी नहीं सोचा कि अगले कि बाते सुनी जाए ......मगर मिसेस बरुआ चुप थी .......बिलकुल चुप ........ क्योंकि वह जानती थी की गुस्से की आग में सफाई पेश करने का मतलब हैं आग में घी डालना l क्या हुआ बॉस को लगा की वह काम नहीं करती हैं l पर हकीकत तो उसे पता था ? मीटिंग में सिर्फ बॉस की आवाज गूंजती रही , उन्होंने दूसरे पक्ष का कुछ सुनना जरुरी समझा ही मिसेस बरुआ ने अपनी सफाई पेश करना जरुरी समझी , क्योंकि उसे अपने आप पर भरोसा था , उससे बस काम में ही तो डिले हुआ था , ऐसा कोई अपराध तो नहीं किया था जिससे कि उसे शर्मिंदगी उठानी पड़ रही हो , उसे तो बॉस की इस बर्ताव पर दया रही थी l बहरहाल उसके मष्तिष्क पर मिसेस भंडारी के कहे वह वाक्य गूंज रहा था -" बॉस इज ऑलवेज राईट " l

रीता सिंह "सर्जना "तेजपुर असम


Tuesday, January 31, 2017

तोहफा (कहानी )

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चारु बुआ को आये पांच दिन हो गए हैं l काफी दिन  बाद आई हैं l इसीलिए मम्मी उसकी बड़ी खातिरदारी कर रही हैं l वैसे भी खातिरदारी करने का और एक कारण भी हैं l चारु बुआ धनाढ्य महिला हैं l उनके पति विदेश में रहते है अच्छा -खासा रुपया -पैसा है l घर में कार ,फ्रिज ,टी .वी,वी .सी .आर सभी कुछ तो है l और तो ओर जब फूफाजी भारत आते है तो जाने क्या -क्या सामान लेकर आते है l चारू बुआ मम्मी के लिए कुछ कुछ जरुर लेती आती है l मम्मी के जोर देने पर चारू बुआ ठहरी हुई है l वह तो कब के जाना चाहती थी l कभी -कभी मम्मी पर गुस्सा आने लगता हैं l

"ऐसा क्या हैं चारू बुआ में जो तुम उसकी खातिरदारी में लगी रहती हो ?" एक दिन साहस बटोर  कर मैंने पूछा l ऐसा कहना शायद मम्मी के लिए पसंद ना आई होगी तुनककर बोली "तुमसे मतलब ?" मैं जानती हूँ वे मेरा ब्याह विदेशों में कार्यरत किसी युवक से कराना चाहती हैं l इसलिए मम्मी बुआ के आगे पीछे हमेशा लगी रहती हैं l मगर मुझे मम्मी की यह आचरण बिलकुल पसंद नहीं l वे अच्छी तरह जानती है कि मुझे अपने वतन से कितना प्यार हैं l मेरा समाज सेवा करना उन्हें खटकता हैं l कहती हैं समाज सेवा के बदले में मुझे क्या मिलता हैं ?क्या इसलिए तुझे उच्च शिछा दिलवायी थी ? परन्तु माँ को कौन समझाये कि इस काम से मुझे कितनी आत्म संतुष्टि मिलती हैं l मुझे आडंबर बिलकुल पसंद नहीं l मैं तो सादा जीवन व्यतित करना चाहती हूँ l नजाने चारू बुआ को मम्मी से इतना लगाव क्यों हैं ? वह तो हमारी अपनी बुआ नहीं हैं l हमारी अपनी बुआ तो भक्ति हैं l हाँ भक्ति बुआ ,मुझे बहुत अच्छी लगती हैं उन्हें l जब भी वे यहाँ आती हैं मुझे बेहद ख़ुशी मह्सुस होती l क्योकि कम से कम उनका बिचार मुझसे मिलता हैं l कौन नहीं जानता भक्ति बुआ को मानीकपूर इलाके की अच्छी समाज सेविका हैं l पर माँ उन्हें फूटी आखों देख नहीं सकती l वह इसलिए कि उन्होंने माँ के मर्जी के खिलाफ अंतर्जातीय विवाह किया था l माँ को डर हैं कि कही मैं भी भक्ति बुआ कि तरह हो जाऊ l जब वह आती हैं माँ हमारी तरफ कड़ी नजर रखती हैं l मगर पापा बहुत अच्छे हैं l वे कभी भक्ति बुआ के खिलाफ नहीं थे l बीच में माँ ही दीवार बन खड़ी हुई थी l जिसके कारण बुआ को कोर्ट में जाकर शादी करनी पड़ी l मम्मी कि कड़ी नजर से बचकर पापा दोनों को आशीर्वाद देने पहुंचे थे l उस वक्त भक्ति बुआ के आखो से आश्रुधारा निकल पड़ी थी l बाबुल का घर छुट गया l भक्ति बुआ का ससुराल में प्रवेश हुआ l ससुराल की अवस्था ठीक नहीं थी l भक्ति बुआ निराश हुई l अपने बाबुल के घर का सारा सुख त्याग कर उन्होंने संघर्ष का जीवन आरम्भ कर दिया l पढ़ी-लिखी बहु वो भी दुसरे बिरादरी का इतना संघर्षशील ,ऐसी बहु को पाकर सास-ससुर गदगद हो गए l

इसी बीच उन्हें स्कूल में शिक्षिका की नौकरी मिल गयी और पति के वकालती का प्रेक्टिस भी धीरे-धीरे शुरू होने लगा l भक्ति बुआ यूँ ही पढ़कर चुप रहनेवाली में से नहीं थी l उन्होंने समाज सेवा भी शुरू कर दिया l
माँ अब भी भक्ति बुआ को घर आने नहीं देती थी l परन्तु यह जानती थी की पापा चुपके से उनसे मिलते हैं l इसी बात को लेकर दोनों में झगडा हो जाता l हम ड्राइंगरूम में बैठे टी.वी देख रहे थे l टेलीफोन की घंटी घनघना उठी l माँ ने रिसीवर उठाया l माँ के चेहरे का बदलाव हम स्पस्ट देख रहे थे l पापा ने पूछा "क्या बात हैं ?खैरियत तो हैं ?" वे फोन क्रेडिल पे रखती हुई धीरे से बोली -"भक्ति का अस्पताल से फोन था l विशाल का एक्सीडेंट हुआ है l " विशाल मेरा छोटा भाई हैं l बेहद चंचल ,नया-नया स्कूटर चलाना सिखा हैं l हम झटपट अस्पताल के लिए रवाना हो गए l

अस्पताल में जब हम पहुंचे तो पता चला विशाल को आपरेशन थियेटर में ले जाया गया हैं और भक्ति बुआ आपरेशन थियेटर के बाहर खड़ी हैं l माँ रोये जा रही थी l पापा ने बुआ से पूछा -यह सब कैसे हुआ ?"

मैं स्कूल से रही थी l रास्ते में काफी भीड़ थी l मैंने माजरा क्या हैं यह जान्ने के लिए उधर नजरे दौड़ाई तो देखा विशाल बेहोश पड़ा हैं l उसके स्कूटर को कार से टक्कर लगी थी l फिर झट पट उसे उठाकर अस्पताल लाकर घर फोन कर दी l माँ रो रही थी l मैं ईश्वर को स्मरण कर रही थी l सभी डॉक्टर का इन्तजार कर रहे थे l अचानक डॉक्टर आपरेशन थियेटर से बाहर निकलकर आये l भक्ति बुआ सभी को धांधस बंधा रही थी l डॉक्टर को देखकर वह पूछने के लिए लपकी l
"डॉक्टर साहब अब वह कैसा हैं ?"
"डरने की कोई बात नहीं ,अब वह खतरे से बाहर हैं l "
विशाल बच गया l सभी ने ईश्वर को लाख-लाख धन्यवाद दिया l इस हादसे के बाद माँ भक्ति बुआ के प्रति थोडा नर्म हुई l आने-जाने का सिलसिला शुरू हुआ पर जितनी चारु बुआ के पीछे भागती हैं उतना भक्ति बुआ का आदर यहाँ कभी नहीं हुआ l

माँ आज उदास हैं l क्योंकि चारुबुआ आज जा रही हैं l फिर जाने कब आएगी l मम्मी चारुबुआ को मेरे लिए लड़का देखने की बात स्मरण करा रही हैं औत चारुबुआ निश्चिन्त होने के लिए आश्वासन दे रही हैं l चारु बुआ चली गयी l फिर सब कुछ पहले की तरह सामान्य हो गयी l
करीब तिन महीने बाद चारु बुआ का एक लंबा पत्र आया l पत्र पढ़कर मम्मी ख़ुशी से उछल पड़ी l मुझे शक हुआ हो हो मेरे लिए लड़के की बात लिखी होगी l मैंने उन्हें पापा से कहते सूना - " अजी सुन रहे हो चारु जीजी ने हमारी श्रुति के लिए एक लड़का देखा हैं l लड़का अमेरिका में इंजिनियर हैं l दान दहेज़ का भी कोई झमेला नहीं l बस लड़की पढ़ी-लिखी व् सुन्दर होनी चाहिए l हमारे तो भाग खुल गए l लड़का मिला वह भी अपनी बिरादरी का l माँ के जैसे पर निकल आये हो l मम्मी बस अपनी ही कहती जा रही थी l "कुछ कहते क्यों नहीं ?" पापा को चुप होते देख मम्मी ने कहा l

"क्या कहू,तुम तब से अपनी ही कह रही हो l " पापा ने मम्मी को समझाते हुए कहा - "इतना खुश होना ठीक नहीं l हमें श्रुति की राय भी जाननी चाहिए l वैसे भी आज विदेशो में भारतीय कितने बेटियों को प्रताड़ित होना पड़ता हैं l यह जानते हुए भी तुम अपनी बेटी को ..........दुःख की बात हैं l शायद मम्मी को पापा का ऐसा कहना अच्छा नहीं लगा l वह भुन भुनाती हुई किचेन की तरफ चली गई l
रात को खाने की मेज में मम्मी ने साफ़ ऐलान किया क़ि वे चारु बुआ के भेजे रिश्ते को स्वीकार करती हैं l पापा चुप थे l मैं भी चुप रही l सिर्फ मम्मी जाने क्या-क्या बकती रही l
मैं बालकनी पर कड़ी थी l पापा भी वही गए l पापा कहने लगे -बेटा तुम अपनी मम्मी की बात का बुरा मत मानना l मैं उसे धीरे-धीरे समझा लूँगा l पापा जानते हैं क़ि मुझे अमित पसंद हैं l
दुसरे दिन मेरा भक्ति बुआ के घर जाना हुआ l बातों ही बातों में बुआ ने अमित के बारे में पूछा l उन्हें भी पता हैं क़ी मैं और अमित एक दुसरे को चाहते हैं l एक बार बुआ अमित से मिली भी थी l
अमित का सौम्य व्यक्तित्व देख बुआ फुले नहीं समाई थी l
मैंने बुआ को कल वाली बात बतायी l चिंतित होकर बोली- "अमित कुछ दिनों के लिए बाहर गया हुआ हैं l " भक्ति बुआ ने मुझे धांढस बढाया क़ी वह मेरे लिए मम्मी से लड़ेगी l

भक्ति बुआ जब भी हमारे घर आती हैं l मम्मी औपोचारिकता के खातिर थोडा बहुत बोल लेती हैं l बुआ ने मौका देखकर मम्मी से बात छेडी l
"भाभी सूना हैं ,हमारी श्रुति के लिए लड़का देखा हैं ?"

"हाँ ,लड़का अमेरिका में सेटल हैं l "मम्मी खुश होती हुई बोली l
"क्या आपने लड़का देखा हैं ?"
"लड़का क्या देखना l खाते-पिते घर का हैं ,विदेश में रहता हैं और क्या चाहिए हमें,हमारी श्रुति तो राज करेगी राज हाँ l "
"मगर भाभी ?"
"मगर-वगर कुछ नहीं,मैं तो वही श्रुति की शादी कर दूंगी l मम्मी ने जैसे ऐलान कर दिया l मम्मी ने चारुबुआ को ख़त दल दिया क़ी उन्हें यह रिश्ता मंजूर हैं l
इसके कई रोज बाद भक्ति बुआ हमारे घर आई l साथ में एक सुन्दर युवती थी l मम्मी क़ी उत्सुकता पूर्ण नजरे बुआ ने देख लिए l भक्ति बुआ कुछ कहे, इससे पहले ही वह युवती बोल पड़ी l
"माँ जी, मैं हाथ जोडती हूँ क़ी श्रुति की शादी अरुण से करे l आप जिस विदेशी चकाचौध से प्रभावित होकर श्रुति का विवाह करने जा रही ,वह अस्थाई हैं l अरुण ने मुझसे शादी क़ी थी l अमेरिका ले गया l मगर कुछ ही दिनों के बाद मुझे उसका असली चेहरा मालुम हुआ l मेरी जिंदगी का वह सबसे बुरा दिन यह था क़ी अरुण पहले से ही शादी-शुदा था l मेरे माता-पिता ने विदेशी चमक में यह देखना भूल गए क़ी उस व्यक्ति के व्यक्तित्व कितना गन्दा हैं l साल भर पहले मेरा उनसे तलाक हुआ हैं l
इसीलिए जब मैंने सूना क़ी एक लड़की क़ी जिंदगी फिर उजड़ने वाली हैं तो मैं रह पायी l यह तो भक्ति जी का शुकर हैं क़ी मेरी मुलाकात उनसे हो गई l
मम्मी को जैसे बिच्छु ने डंक मार ली हो l जैसे उनकी कानों में विश्वास ही नहीं हुआ l उन्हें लगा होगा बेटी का अच्छा रिश्ता देखकर सभी जल रहे हैं l
लेकिन भक्ति बुआ के साथ उस युवती का आना मुझे बहुत अच्छा लगा l भगवान् जैसे मेरी लाज बचाने भेजा हो l अमित में क्या कमी हैं ? पढ़ा -लिखा है l अच्छा खासा नौकरी हैं ,समझदार हैं और सबसे बड़ी बात तो यह हैं की वह मुझे समझता हैं l हमारे विचार मिलते हैं l मगर मम्मी ! वह क्या चाहती हैं ? रुपया -पैसा ! भक्ति बुआ के चले जाने पर मम्मी को थोडा गंभीर होते मैंने देखा l
पहले जैसा पापा से इस विषय पर बाते करते नहीं देखी l
एक रोज मम्मी चारु बुआ के घर से लौटी l उन्होंने तार भेजकर उन्हें बुलाया था l शायद कोई गंभीर बाते होगी l वर्ना मम्मी को क्यों बुलवाती l मम्मी चारु बुआ के घर से लौटकर गंभीर दीख रही थी l
सोफे पर बैठते हुए मम्मी ने कहा -
"बेटा जरा एक ग्लास पानी पिलाना l " मम्मी का बदलाव मुझे आश्चर्य कर गया l पानी का ग्लास मम्मी को थमाते हुए मैंने पूछा -
"क्या बात हैं मम्मी आप इतनी परेशान दीख रही हो ?"
लम्बी सांस छोड़ते हुए मम्मी ने मेरी तरफ देखा फिर जो कहा वह सुनकर मैं दंग रह गई l यह कैसे हुआ ? चारु बुआ और फूफाजी का महीने भर पहले तलाक हो गया था ,फूफाजी ने वही एक विदेशी लड़की से ब्याह रचा लिया हैं l यह सुन दिल को काफी धक्का लगा l
मम्मी ने प्यार से कहा - "बेटा ,एकदिन अमित को घर बुलाना l अपने ही मुल्क के चमकते हीरे को मैं विदेशी चकाचौध में देख नहीं पायी थी l माँ को जैसे आज पश्चताप हो रहा था l
माँ का यह प्यार भरा रूप मैंने पहले कभी नहीं देखा था l सोच रही हूँ मम्मी का अमित से मिलने की ललक मेरे लिए एक खुबसूरत तोहफा तो नहीं ?

रीता सिंह"सर्जना"
मार्फतः डी एफ ' ऑफिस
पोः कलियाभोमोरा
दोलाबारी
तेजपुर (असम)
पिनः 784027
email:-rita30singh@gmail.com